
अशफाक उल्ला खाँ एक महान स्वतंत्रता सेनानी
चौरी-चौरा की घटना के बाद, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर भारत के युवाओं को निराशाजनक स्थिति में छोड़ दिया था। अशफाक उल्ला उनमें से एक थे। असफाक उल्ला खाँ ने जल्द से जल्द भारत को स्वतंत्र करने की ठान ली थी और ये उग्रवादियों से जुड़ गए।
अशफाक उल्ला खाँ ने राम प्रसाद बिस्मिल (जो शाहजहांपुर के प्रसिद्ध क्रांतिकारी और आर्य समाज के सदस्य थे) के साथ मित्रता कर ली। उनकी आस्थाओं में मतभेद होने के बावजूद भी भारत को ब्रिटिश शासन के बंधनों से मुक्त कराना उनका प्रमुख उद्देश्य था।
8 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में क्रांतिकारियों द्वारा एक बैठक आयोजित की गई थी। जिसमें उन लोगों ने ट्रेन से ले जाए जा रहे हथियार को खरीदने के बजाय उस सरकारी खजाने को लूटने का फैसला किया था। इस प्रकार 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, राजेन्द्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, शचीन्द्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुन्दी लाल, मनमथनाथ गुप्ता समेत कई उग्रवादियों के समूह ने ककोरी गाँव में सरकारी धन ले जाने वाली ट्रेन में लूटपाट की थी। इस घटना को इतिहास में प्रसिद्ध काकोरी ट्रेन डकैती के रूप में जाना जाता है।
इस लूटपाट के कारण राम प्रसाद बिस्मिल को 26 सितंबर 1925 की सुबह पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। अशफाक उल्ला अभी भी फरार थे। वह बिहार से बनारस के लिए चले गए और वहाँ जाकर उन्होंने इंजीनियरिंग कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने 10 महीने तक वहाँ काम किया। इसके बाद वह इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के लिए विदेश जाना चाहते थे जिससे आगे चलकर उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में मदद मिल सके। अपने इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए वह दिल्ली भी गए। अशफाक उल्ला खां ने अपने मित्रों में से एक पर भरोसा किया जिसने उनकी मदद करने का नाटक किया था और बदले में उसने असफाक को पुलिस को सौंप दिया। अशफाक उल्ला खाँ को फैजाबाद जेल में बन्द कर दिया गया था। उनके भाई रियासतुल्लाह उनके वकील थे जिन्होंने इस मामले (केस) को लड़ा था। काकोरी ट्रेन डकैती का मामला राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन को मौत की सजा देने के साथ समाप्त हुआ। जबकि अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अशफाक उल्ला खाँ को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी।
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