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इतिहास गवा हे नाम से नहीं काम से ...........
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इतिहास गवा हे नाम से नहीं काम से ...........

 

                                      शाहपुर से ,हबीबगंज  अब  रानी कमलापति रेलवे स्टेशन

                                                   इतिहास गवा हे नाम से नहीं काम से ...........  
                                                                              

डेस्क रिपोर्ट । भारत का पहला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बनकर तैयार है इसे अब तक हबीबगंज के नाम से पहचाना जाता था  लेकिन अब ये रानी कमलापति का नाम से जाना जाएगा लेकिन क्या आपको पता है कि इस स्टेशन का नाम हबीबगंज ही क्यों रखा गया था, बातें साल 1979 की जब भोपाल के शाहपुर रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर हबीबगंज रखा गया था यह नाम दो अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना पहला हबीब और दूसरा भोपाल के नवाब थे इन्होंने साल 1979 में रेलवे स्टेशन के विस्तार के लिए अपनी जमीन दान में दी थी इस स्टेशन के पास में ही एमपी नगर एरिया है जिसे पहले गंज के नाम से पहचाना जाता था इस तरह हबीब और गंज को एक करके हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम तय किया गया हबीबगंज स्टेशन का निर्माण अंग्रेजों ने करवाया था तब इनका नाम शाहपुर था लेकिन साल 1979 में रेलवे स्टेशन का विस्तार किया और नाम हबीबगंज रखा गया

दरअसल नवाब सुल्तान जहां बेगम का अपने सबसे छोटे बेटे नवाब हमीदुल्लाह खान के लिए पुत्र मोह ना जागा होता तो भोपाल के आखिरी नवाब शासक के रूप में आज नवाब हबीब उल्लाह खान का नाम ही याद किया जाता वसीयत और 22 अगस्त व्यवस्था को नवाब और अंग्रेजों की कूटनीति ने कुचल जरूर दिया लेकिन हबीबुल्लाह ने अपने आदित्य की सैकड़ों एकड़ जमीन दान में दी थी जिस पर अब वर्ल्ड क्लास स्टेशन आकार ले रहा है राजधानी भोपाल के वरिष्ठ इतिहासकार खालिद गनी बताते हैं कि नवाब सुल्तान जहां बेगम का भोपाल रियासत पर सन उन्नीस सौ एक से शुरू होकर 1926 तक जारी रहा नवाब बेगम के तीन पुत्रों में नवाब नसरुल्लाह खान सबसे बड़े थे और सबसे छोटे बेटे नवाब हमीदुल्लाह खान उनके तीसरे पुत्र का नाम ओबेदुल्ला खान था वंशागति व्यवस्था के अनुसार खानदान के बड़े बेटे नसरुल्लाह खान को बेगम के बाद रियासत मिलना थी लेकिन उनकी मृत्यु बेगम के जीवित रहते हुए सन 1924 में ही हो गई नियमानुसार नसरुल्लाह खान के बाद यह अधिकार उनके बड़े बेटे नवाब हबीब उल्लाह खान को जाना था लेकिन नवाब बेगम इस बात को स्वीकार करने के बजाए अंग्रेजों से संपर्क करने इंग्लैंड पहुंची और उन्होंने वहीं से अपने पद से इस्तीफा देकर अपनी रियासत का बारिश सबसे छोटे बेटे नवाब हमीदुल्लाह खान को घोषित कर दिया नवाब बेगम के वंशजों में सबसे बड़े नवाब हबीब उल्लाह खान को जब पारिवारिक विवादों का सामना करना पड़ा तो उन्होंने भोपाल रियासत को रुखसत कहकर अपना आशियाना पुणे को बना लिया खालिद गनी बताते हैं कि उम्र में कम अंतर वाले चाचा भतीजे नवाब हमीदुल्लाह खान और नवाब हबीबुल्लाह खान के बीच लंबे समय तक तकरार और विवाद वाले रिश्ते बने रहे इसके चलते उन्होंने शहर छोड़ने का फैसला लिया था रियासत भोपाल में उनकी बड़ी संपत्तियों में हबीबगंज ईदगाह स्थित ईदगाह स्थित अभी मंजिल आदि शामिल थे अभी गंज क्षेत्र में स्थित हबीबिया स्कूल भी उनकी संपत्ति का हिस्सा है जब हबीबगंज स्टेशन बनाने की योजना तैयार हुई तो नवाब अभी गुल्ला खान ने अपने पति की जमीन में से सैकड़ों एकड़ भूमि इस बेहतरी के काम के लिए सरकार को सौंपी खालिद बताते हैं कि इसको लेकर अंग्रेजों और नवाब के बीच एक लिखित समझौता भी हुआ था जिसके आधार पर रियासत कायम रहने तक एक बड़ी राशि रेलवे से नवाब परिवार को मिलती रही है हबीबगंज रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास स्वरूप दिए जाने के बाद इसका नामकरण भोपाल रियासत

की गोड़वंश  की रानी कमलापत के नाम पर कर दिया गया है,  राजधानी भोपाल से इस नए नाम को लेकर इक्का-दुक्का विरोध स्वर जरूर हुवा हैं , लेकिन नवाबों की तरफ से इस मामले में कोई विरोध नहीं हुआ,  वजह यह बताई जाती है कि नवाब अब्दुल्ला खान का परिवार पुणे में शिफ्ट हो गया था और उनका अब भोपाल से सीधा संपर्क कम ही है नवाब बेगम के दूसरे पुत्र ओबेदुल्ला खान का रियासत में कोई दखल नहीं रहा और हमीदुल्लाह परिवार सियासी और सरकारी दबाव में कुछ बोलने से परहेज कर रहा है

                                                      कौन थी  रानी कमलापति 

 जानकारी के अनुसार रानी कमलापति एक गोंड रानी थीं जिनका विवाह गिन्नौरगढ़ के राजा के साथ हुआ था उन्हें गोंड राजवंश की अंतिम रानी माना जाता है. भोपाल में कमला पार्क उन्हीं के नाम पर बना है और उसी में उनका एक महल भी मौजूद है. रानी कमलापति के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ख़ूबसूरत थीं. इतिहासकारों की बात मानें तो भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर दूर गिन्नौर गढ़ था जहां के राजा निज़ाम शाह थे., उस वक़्त भोपाल भी निज़ाम शाह के क़ब्ज़े में था.निज़ाम शाह एक गोंड राजा थे , जिनकी सात बीवियां थीं. निज़ाम शाह की सात बीवियों में से एक बीवी का नाम कमलापति था, लेकिन निज़ाम शाह का भतीजा आलम शाह अपने चाचा की संपत्ति हड़पना चाहता था और कमलापति को अपना बनाना चाहता था. कुछ इतिहासकार चैनसिंग नाम बताते हे , आलम शाह ने रानी कमलापति को पाने के लिए एक दिन अपने चाचा निज़ाम शाह के खाने में ज़हर मिला दिया जिससे निज़ाम शाह का निधन हो गया. निज़ाम शाह की मौत के बाद आलम शाह ने राज्य पर क़ब्ज़ा कर लिया. निज़ाम शाह की मौत के बाद रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह के साथ भोपाल के रानी कमलापति महल में रहने लगीं । लेकिन रानी कमलापति के दिमाग़ में अपने पति की हत्या का बदला लेना चल रहा था. ऐसे में रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद ख़ान से मदद मांगी, मोहम्मद ख़ान उस वक़्त अब के इस्लामपुर में शासन कर रहे थे, रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद ख़ान से अपने पति की हत्या का बदला लेने के लिए कहा और उसके बदले में एक लाख अशर्फ़ियां देने का वादा किया. दोस्त मोहम्मद ख़ान ने आलम शाह की हत्या कर दी.इसके बाद रानी दोस्त मोहम्मद ख़ान को सिर्फ़ 50 हज़ार अशर्फ़ियाँ दे पाई थीं और बाक़ी बचे पैसों के बदले उन्होंने भोपाल का हिस्सा दे दिया। इतिहासकारो के अनुसार , जबतक रानी कमलापति जिंदा रहीं तब तक दोस्त मोहम्मद ख़ान ने कभी भी उन पर हमला नहीं किया. उन्होंने भोपाल पर क़ब्ज़ा उनकी मौत के बाद ही किया। इस पर इतिहासकारो के अलग -अलग मत हे।


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