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न में हारी न तुम हारे, हारे तो समर्धक बेचारे ......
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न में हारी न तुम हारे, हारे तो समर्धक बेचारे ......

 

                                                  न में हारी न तुम हारे, हारे तो समर्धक बेचारे ....

                                                 

डेस्क रिपोर्ट। कहाँ जाता हे की राजनीती में न तो स्थाई दुश्मनी होती हे न ही स्थाई दोस्ती और आजकल के राजनैतिक दल हर कदम नुकसान और फायदे को देख कर उठाते  हे, असूल तो अब इतिहास की बात हो गई हे। ऐसा ही माज़रा नगर पालिका चुनाव में और उसके बाद जावरा नगर में दिखाई दिया। जहाँ बीजेपी ने अपने दोनों बागी पार्षदों वार्ड नंबर 29 से शिवेंद्र माथुर और वार्ड 30 से भावना विश्वास शर्मा ने भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की,दोनों को पार्टी का दुपट्टा पहना कर फिर से पार्टी में शामिल कर लिया, वही कांग्रेस ने निजाम काजी जो कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर वार्ड नंबर 17 से निर्दलीय पार्षद का चुनाव लड़ा और जीत भी गए। उन्हें तथा प्रदेश कांग्रेस के नेता वीरेंद्र सिंह सोलंकी को कांग्रेस ने निष्कासित कर दिया था लेकिन अपनी भूल सुधार करते हुए सोमवार को दोनों नेताओं को पार्टी में वापस ले लिया। अब वो किस तरह से भूल सूधार हुई हे, जनता सब जानती हे। 

सबसे ज़्यादा नुकसान में तो......

पिछले दो दिनों में बड़े असुलो की बात करने वाले दोनों दलों ने जिस तेज़ी से बागियों को पार्टी से बाहर किया था, जीतने के बाद उसी तेज़ी से पार्टी में वापस लेने को मज़बूर  होना पड़ा ये अलग बात हे की क्या वजह रही जनता सब जानती हे। किसको कितना नुकसान होगा और किसको कितना फायदा, सबसे ज़्यादा नुकसान में तो वो समर्थक रहे हे जिसने निकाय चुनाव मे इन बागियों के लिये तन मन धन से काम किया और पार्टी समर्थित उम्मीदवारों स जम कर लोहा लिया, यहाँ तक की इन बागियों के लिए अपनों को दुश्मन बना लिया। अब समय बातएगा की किसको कितना फ़ायदा होता हे, किसको कितना नुकसान लेकिन ये तो तय हे की समर्थक अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हे । 

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