
दबाव समूहों द्वारा कानून हाथ मे लेना क्या .......???
दबाव समूहों द्वारा कानून हाथ मे लेना क्या.......???
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दबाव समूहों को अब अनिवार्य एवं उपयोगी तत्व माना जाने लगा है। समाज काफी जटिल हो चुका है एक व्यक्ति (नेता) अपने हितों को स्वयं आगे नहीं बढ़ा सकता है। ज्यादा से ज्यादा सौदेबाजी की शक्ति प्राप्त करने के लिए उसे अन्य साथियों से समर्थन की आवश्यकता होती है एवं इससे समान हितों पर आधारित दबाव समूहों का जन्म होता है। काफी समय से इन समूहों पर ध्यान नहीं दिया गया लेकिन अब राजनीतिक प्रक्रिया में इनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो चुकी है क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में परामर्श, समझौते एवं कुछ हद तक सौदे के आधार पर राजनीति चलती है।
कभी-कभी ये समूह हित समूह के रूप में राष्ट्रीय एकीकरण के समक्ष खतरे भी उत्पन्न कर देते हैं। जहाँ राजनीतिक सत्ता कमजोर होती है वहाँ अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली दबाव समूह सरकारी मशीनरी को अपनी मुट्ठी में ले सकता है। दबाव समूह सरकारी निर्णयों को केवल अपने समूह के पक्ष में असंतुलित कर सकते हैं और शेष जन समुदाय के अधिकारों का हनन हो सकता है।
ऐसे ही दबाव समूहों द्वारा आज जिले की दो तहसीलों में धारा 144 लगी होने के बावजूद आलोट में विधायक द्वारा अपने हाथों से गोदाम का शटर खोलना और किसानों को खाद ले जाने के लिए कहना और तीखे अंदाज में अधिकारियों को फटकार भी लगाना। हलाकि उसके बाद प्रशासन ने अपनी गलती मानते हुवे किसानों को डिजिटल अंगूठे की बजाए पावती पर खाद देने के आदेश दिए, बाद में जिला प्रशासन द्व्रारा पत्रकार वार्ता कर विधायक एव नेता पर विभिन्न धाराओं के अंतर्गत प्रकरण दर्ज करने की खबर हे, वही जावरा में भीम आर्मी के द्वारा धारा 144 लागू होने एव बिना अनुमति प्रदर्शन किया जिस पर एसडीएम द्वारा कार्रवाई कर करीब 10 से 12 लोगों को पुलिस के हवाले किया गया हे। ताक़त के दम पर जिस तरह से कानून हाथ में लिया गया और विरोध के हक़ से हटकर बिना अनुमति के धरना प्रदर्शन कर प्रशासन पर दबाव बनाया गया ये सोचनीय प्रश्न हे।
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