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अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया ..........
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अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया ..........

                                        अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया ..........

                                              

डेस्क रिपोर्ट। विधानसभा चुनाव में टिकट को लेकर नेताओं का इधर से उधर आने-जाने का सिलसिला जारी है। मौजूदा सियासी रण के स्वार्थी नेताओं को दूसरी राजनीतिक पार्टियां भी तलाश रही और टिकट दे रही हैं। कल तक बीजेपी को कोसने वाली सभी पार्टियों ने अपने यहाँ भी वाशिंग मशीन लगा ली हे जिससे दागदार नेताओ के इनकी पार्टी ज्वाइन करते ही दाग धुल जाते हे। कहावत हे की हमाम में सभी ...??

गौरतलब रहे की पहले भी चुनाव के दौरान किसी भी दल के उम्मीदवार के खिलाफ बड़ी ही चालाकी से अदब के दायरे में विरोध हुवा करता था,और बड़ी ही सफाई से निबटा दिया जाता था।  परन्तु 2018 के बाद जिस तरह से राजनीती में गिरावट देखी गई हे, विचारणीय हे। अगर रतलाम जिले की जावरा और आलोट विधानसभा की बात की जाए तो यहाँ जिस तरह से इस विधानसभा चुनाव में बागी उम्मीदवारों के साथ ही भीतरघात करने वाले और पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ कार्य करने वाले कार्यकर्ताओ की तादाद बहुत ज्यादा दिखाई दे रही हे।

इतिहास गवा हे की जावरा में 1962 के चुनाव में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहते हुवे कैलाश नाथ काटजू को किस तरह उनके पार्टी के ही लोगो ने भीतर घात करके हराया था, यही सिलसिला शम्सूद्दीन वकील से लेकर हबीब साहब, मसूद वकील और डॉ हमीरसिंह राठौर तक चला रहा हे, बड़ी सफाई से इन लोगो के कांधे का कुटनैतिज्ञो द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा हे। जानकारों की माने तो इस बार भी कुछ लोगो के कांधे तैयार किये गए हे जिनके कांधे पर बन्दुक सजा दी गई हे अब देखना है कि कौन इस्तेमाल होता हे, और कौन बच के निकलता हे।

देखा जाए तो काफी अरसे से नगर में कांग्रेस और बीजेपी की राजनीती चंद लोगो के हाथ में रही हे, कोंग्रस के कुछ वरिष्ठ नेता ऐसे हे जो सिर्फ नाम चाहते हे जिनकी पेंट में जेबे नहीं है, और जिनके पास जेब हे वो बड़ी चालाकी से इन वरिष्ठ नेताओ का इस्तेमाल करते हे, इन लोगो ने अपने परिवार के अलावा दूसरी लाइन कभी तैयार नहीं होने दी इसका पारिणाम ये हुवा के युवा नेताओ का इनके साथ अपना राजनीतिक भविष्य कमजोर दिखाई दिया तो उन्होंने पड़ोस के नेताओ को अपने यहाँ आमंत्रित कर लिया फिर चला शै-मात का खेल परिणाम सामने हे। अभी तो हर बागी शेर बना फिर रहा हे और इनको चढ़ाने वाले अपने कांधे पर उढाए घूम रह हे, नाम वापसी की आखरी तारीख के बाद पता चलेगा की कौन शेर हे, और .....???


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